Submitted By : Mohammad Imran

एहसास है उनकी भी बेक़रारी का हमें, कुछ ऐसे,
जब से सुना है, हल अपने भी नासाज़ से हैं |
जी चाहता उड़ के मिल आयें उनसे ,
बेबस हैं अपने ही इरादों में बंधे से हैं |


Date : April 13, 2012 9:48:53

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